भजन करो

भजन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बुढ़े हो जाओगे आँख के अंधे हो जाओगे। 

दर्शन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

भजन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बूढ़े हो जाओगे कान से बहरे हो जाओगे। 

भजन सुनो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बूढ़े हो जाओगे हाथ से लूल्हे हो जाओगे।  

दान करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है।   

जब तुम बूढ़े हो जाओगे पैर से लंगड़े हो जाओगे। 

तीर्थ करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बूढ़े हो जाओगे ह्रदय से मैले हो जाओगे। 

ह्दय में प्रभु को बसा लो तुम बुढ़ापा किसने देखा है। 

भजन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

32 विचार “ भजन करो&rdquo पर;

          1. इसलिए दिल की जगह मन शब्द यूज कर सकते हैं। क्योंकि दिल से कहने का हक सिर्फ पति को दिया है क्योंकि मैं नये जनरेशन की तरह नहीं मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ।

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          2. बाते तो दिल से ही निकलती है—दिमाग की बातें बनावटी होती है।भगवान के दिल पर भी विजय भक्तों ने पाया है दिमाग पर नही।मा–बहन,भाई किसी से भी प्रेम दिल से ही होता है।दिमाग सिर्फ कमाना और फरेब जानता है।ये मेरा मत है। हो सकता है आपके मत से ना मिले माफी चाहूंगा।दिल मे जो आया सो लिख दिया।

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            1. मैं ही हिंदी से एम. ए. किया है इसलिए कह रही हूँ। जैसे रजनी का पर्याय वाची रात और विभावरी होता है। लेकिन अर्थ बदल जाता है। रात्रि को रात और रजनी कहा जाता है और विभावरी भोर के समय को कहते हैं। वही माईनर सा फर्क दिमाग और मन में है।

              जैसे पुराने गीत गानों उदाहरण देते हुए समझाती हूँ।
              तोरा मन दर्पण कहलाये भले बुरे सारे कर्मो को देखे और दिखाए की जगह तोरा दिमाग दर्पण कहलाये तो नहीं कह सकते न। उम्मीद करती हूं नाराज होने के बजाय शब्दों के फर्क को समझने का प्रयास करेंगे।

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    1. मेरे पास लोक में प्रचलित गीत गानों का अम्बार है। इसी तरह मेरे पास मीरा पर इंगित भजन है उसे लिखकर पोस्ट करती हूं। वैसे मेरे जागने समय सीमा समाप्त हो गया है परंतु बच्चों के दो दिनों की छुट्टी है इसलिए जग सकती हूँ।

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          1. दोस्ती और रिश्ते जांच परख की जाती है। हो सकता है आपकी छोटी सी परिक्षा ली गई हो कि गलतफहमी होने पर भी आप अपने रिश्तों को कैसे हैंडिल करोगे।

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  1. आपकी इस कविता को पढ़कर लगता हैं दी कि आपने युद्ध का शंखनाद कर दिया हैं। बहुत ही सुंदर प्रयास हैं यो दी और हमें पूर्ण विश्वास की विजय अच्छाई की ही होगी फिर चाहे युग कोई भी क्यूँ ना हो।

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    1. अरे पवन भाई ये कविता नहीं है। ये हम औरत जो भजन कीर्तन गाते हैं। उसी में का एक है। मैं और मेरीकृष्णा बुआ मिल कर गाते हैं तो सुनने वाले मुग्ध हो भाव विभोर हो जाते हैं।

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