जिंदगी में “अन्यास ही आया विचार” और हो गया धर्मयुग की कल्पना (18.8.17) 

हां तो भाई और बहनों, बेटा – बेटी, और हमसे हमारे छोटे और बड़े सहपाठी मित्रों आप हमारे ब्लॉग को पढते होंगे तो आप को याद होगा कि मैं एक युग परिवर्तन की बात करती हूं जो मेरी कल्पना कह लीजिए या माँ सरस्वती का उपहार जिसने युग परिवर्तन तक का संकेत मेरी लेखनी के माध्यम से दिया है जिसका नाम

“धर्मयुग “दिया है। वैसे आपने भी इक आरती में जो इस युग के पहले का नाम आया है पढ़ा, गाया और सुना होगा।

सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,कोई तेरा पार न पाया || टेक ||

पान सुपारी ध्वजा नारियल ले,तेरी भेंट चढ़ाया || सुन ||

सारी चोली तेरे अंग बिराजे,केसर तिलक लगाया || सुन ||

ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे,शंकर ध्यान लगाया || सुन ||

नंगे नंगे पग से तेरे,सम्मुख अकबर आया,सोने का छत्र चढ़ाया || सुन ||

ऊँचे ऊँचे पर्वत बन्यौ शिवालो,नीचे महल बनाया || सुन ||

सतपुरा द्वापर त्रेता मध्ये,कलयुग राज सवाया || सुन ||

धुप, दीप नैवेद्य आरती,मोहन भोग लगाया || सुन ||

ध्यानू भगत मैया तेरा गुण गावे,मनवांछित फल पाया ||

 इस आरती में सत्युग,  द्ववापर, त्रेता मध्ये कलयुग राज सवायां। शब्दों के इस्तेमाल के तरफ आपका ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करती हूं। 

            यदि सत्युग के बाद द्वापर आया और द्ववापर के बाद त्रेता और त्रेता के बीच कलयुग राज चल रहा है तो मेरा मानना है कि जब इस तीनों युग की समाप्ति के बाद कलयुग चल रहा है तो मेरे विचारों की कल्पना ये सोचता है कि कलयुग का भी अवसान होना चाहिए अर्थात समाप्ति होना चाहिए और एक नये युग “धर्मयुग” का आगमन होना ही चाहिए। इसका वर्णन मैंने अपनी कविता में किया जो आप लोगों ने पढ़ा होगा जो इस प्रकार है – 

“एक को आना है तो दूसरे को जाना है। ये प्रकृति का नियम है टाले कभी प्रयत्न से भी टल सकता नहीं। 

सत्युग तो आ सकता नहीं कलयुग भी टीक सकता नहीं और  सच्चा धर्म और कर्म करने से “धर्मयुग” को आने से  कोई रोक सकता नहीं। “

तो मैं यहां ये कहूं कि अब  प्रलय हो जाएगा और कलयुग की समाप्ति हो जाएगी और”  धर्मयुग” की स्थापना होगी तो आपको अटपटा जरूर लगेगा परन्तु मुझे धर्मयुग की कल्पना में कुछ अटपटा नहीं लगता। क्यों कि विचारों का बदलना ही युग परिवर्तन जैसा है। 

       मैं आपका ध्यान एक छोटी सी कहानी की तरफ खींचने की कोशिश करूगीं जो मैंने विक्रम वैताल की कहानी या किसी टीवी सीरियल में देखा था जो आप लोगों में से भी कई लोगों ने देखा और सुना होगा । वो कहानी अपने जमाने की इस प्रकार है – 

माफ कीजिएगा भाव को समझने की कोशिश कीजिएगा और इस कहानी में कुछ भूल या त्रुटि हो तो माफ कीजिएगा। क्यों कि याददाश्त तो अच्छी खासी है परन्तु हो सकता है ज्यादा दिन देखने या सुनने की वजह से कुछ भूल गया हो या छूट गया हो। 

                 चलिए वो कहानी सुनाते हैं। दो किसान भाई रहते हैं जिन्हें अशर्फियों से भरा एक घड़ा मिलता है। तो उस दिन तो सत्युग का चरण था तो दोनों किसान भाई इस लिए लड़ाई कर रहे थे कि ये अशर्फियों से भरा घड़ा तेरा है तो तेरा है और सुबह होते ही कलयुग का चरण आ जाता है तो वो इस लिए लड़ते हैं कि ये अशर्फियों से भरा घड़ा मेरा है, मेरा है कहते हैं। 

तो इस कहानी के द्वारा मेरे कहने का मतलब यह है कि कलयुग में ऐसा कुछ नहीं होने वाला की भूचाल आयेगा और धरती जल मग्न हो जाएगी और किसी नये युग का आगमन होगा ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि न कभी हुआ है न कभी होगा। 

युग परिवर्तन तो होगा पर विचारों का परिवर्तन होगा। संस्कारों का परिवर्तन होगा।  अब मैं आपको बताऊँगी विचारों का परिवर्तन कैसे हो रहा है। 

जैसे वर्डप्रेस, वर्डस्सएप, फेसबुक और ट्विटर तथा तमाम साइड जिसका हमें नाम नहीं पता है। उसके कुछ मैसेज और विडियो देखने पर मुझे परिवर्तन दिखता है। 

1.जैसे कहानी नम्बर एक। पहले अक्सर ये कहानी, विडियो या मूवी में देखते थे कि सास बहू में नहीं पटती है और सास बूढ़ी हो जाती है तो अक्सर वे कहती हैं अपने लाइफ पार्टनर से कि अलग हो जाय या वृद्धा आश्रम की छोडने की बात होती थी। परन्तु मैं एक दिन फेसबुक पर देख रही थी तो मुझे लगा कि ये तो आम बात है छोडो क्या देखना ये तो आये दिन देखने और सुनने को मिलता है पर मेरा विडियो चलता रह जाता है तो मैने ये देखा कि बहू कहती है माँ जी इस उम्र में कहा जायेगी वो भी तो मेरी माँ है।

मैं ये नहीं कहती कि वृद्धा आश्रम बन्द हो जाएगा ऐसा विडियो या लेख पढ कर लेकिन इतना जरूर कहूँगी की जो हम देखते या सुनते हैं उसका असर हमारे जीवन पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जरूर पड़ता है। जिसने भी लिखने और विडियो बनाकर समाज के समक्ष ये संदेश दे रहा है वो काविले तारीफ है। आने वाले कल में इसका असर अवश्य पडेगा और एक दिन युग परिवर्तन जरूर होगा। इस दिशा में प्रयास करने वाले को मैं तहे दिल से अभार प्रगट करती हूं। 

2,दूसरे नंबर पर लड़कियों को लेकर छेड़छाड़ करने के सन्दर्भ में भी  अच्छाई को ग़हण करते हुए अनजान लड़की के लिए लड़ाई कर बहन मानते हुए दिखाया जा रहा है जिसका अच्छा प्रभाव पड़ना ही है। 

हमारे समाज में कुछ विकृति मानसिकता के लोग हैं तो कुछ अच्छे सोच के भी लोग हैं। मेरा विकृत सोच वाले से निवेदन है कि कृपया अपनी सोच अपने तक ही सीमित रखें और वो लोग जो मर्यादित या पवित्र रिश्तों के बीच भी कुछ लगाने से बाज नहीं आते हैं वो जरा सोचे।  ऐसा मेरा क्या 100%में 95%लोग मेरे विचारों से सहमत होंगे।  मेरा मानना है कि इन रिश्तों के बीच गंदी सोच होती ही नहीं। यदि यदा कदा ये घटनाएं कहीं घटता भी हो तो पब्लिक प्लेस पर इस तरह के लेख नहीं लिखने चाहिए जो मात्र5%वाले ही है जिनको पता नहीं कौन सा सुख मिलता है ऐसा करने में।   वो तो लिख या अश्लील तस्वीरें लगा देते हैं वो कभी ये सोचते हैं कि गलती से हीसही यदि उनकी माँ बहन देख लें तो उनको कैसा लगेगा और उसका प्रभाव उन पर क्या पडेगा।या हमारे समाज  पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।  जो लोग गंदी सोच के साथ सोसल प्लेस पर फोटो लगाते हैं वो नहीं लगानी चाहिए। नहीं तो आने वाले दिनों में इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ेगा कि इंसान और जानवरों के बीच जो रिश्तों में फर्क है वो फर्क ही समाप्त हो जाएगा और इंसान की सोच जानवरों जैसा हो जाएगा और कलयुग में भ़ष्ट लोगों का पतन निश्चित है और वही दुर्गा जब काली विक्राली बन जाएंगी और विनाश हो जाएगा ऐसी सोच वालों का। 

       हमारे विचारों में विचारों का बदलना ही नये युग का आगमन है। और विचार बदल रहे हैं इसलिए धर्मयुग का आगमन होने वाला है और युग परिवर्तन होना तो निश्चित है। समया अभाव के कारण लेखनी को 10लाइन की स्तुति सुनाकर विश्राम देना चाहूँगी जो कलयुग की समाप्ति के बाद “धर्मयुग” में  चंडिका का अवतार हुआ है।  जिसे हम” धर्मयुग” में प्रथम पूजा होने की कल्पना से[ प्रथमा देवी] के नाम से जानी जाएंगी।  और यही क्रोध से चंडी का रूप अवतार में प्रथमा देवी के नाम से स्थापना हुआ  है जो मेरा सपना और कल्पना दोनों ही  है। 

  ( 16 अक्टूबर 1994) 

     पल रही है प्रचंड चंडिका, 

         अभिमान भोजन कर रही। 

              क्रोध से जन्मी हुई, 

          ज्ञानी अभी है वालिका। 

    गर्व जब हो खण्ड – खण्ड, 

प्रसन्न हो तब प्रचण्ड चंडिका। 

सत्य और असत्य में, 

 छीड़ना अभी  संग़ाम है। 

धर्म और अधर्म पर,  

“विजय”की यहां बात है। 

एक जगह की बात नहीं, 

 हर जगह शक्तियाँ जाग रहीं। 

परन्तु इसके लिए लगेंगे अभी, 

साल साल पर साल साल। 

अंतिम साल का जब अंत होगा। 

तब सत्य और धर्म से होगा” धर्मयुग “का राज्य। 

” धर्मयुग” की कल्पना को हकीकत में परिवर्तित करने की इच्छा में – 

                             रजनी अजीत सिंह 


16 विचार “जिंदगी में “अन्यास ही आया विचार” और हो गया धर्मयुग की कल्पना (18.8.17) &rdquo पर;

    1. धन्यवाद अभय जी जो आपने पढ़ा। मुझे बस यही जानना था आप से कि कैसा लिखा है बस। और मुझे लाइक कमेंट की गिनती मेरे लिए मायने नहीं रखता पर आप लोगों का विचार और सोच जरूर मेरे लिए मायने रखता है। एक बार फिर अभार आपका। और नये जनरेशन के गुरु को प्रणाम भी।
      🙏

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    1. धन्यवाद अंसारी जी। मेरा एक रिक्वेस्ट है पोस्ट में जो अच्छा लगे उस पर भी या हो सकता है आप किसी विषय वस्तु से सहमत न हो उस पर भी टिप्पणी कर बता सकते हैं। इस टिप्पणी से मेरी लेखनी को दिशा मिलती रहेगी कि क्या लिखना चाहिए और क्या नहीं।

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    1. जय माता दी। नागेश्वर जी। आप हमारे हर रचनाओं को पढ़ते सो प्लीज लेखनी द्वारा लिखे गए विषय पर विचार व्यक्त किया कीजिए ताकि मेरी लेखनी को सही दिशा मिल सके।

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