क्षमा प्रार्थना 

क्षमा प्रार्थना

दोहा – जय दुर्गे! परमेश्वरी! सर्वेश्वरी! महान।

मातु! विघ्न बाधा हरहु, सह्यो बहुत अपमान।। 1

चौ- मातु! करउँ अपराध अनेका। निशदिन घोर एक ते एका।।

समझि ‘अहै यह दास हमारा’। क्षमु अपराध मातु! मम सारा।।

शुभ आवाहन और विसर्जन। नहीं जानउँ तव विधिवत अर्चन ।

क्षमहु कृपा करि माँ परमेश्वरी। एक आस बश तब सर्वेश्वरी।।

मंत्र हिन और क्रिया – विहिना। मम पूजा यह भक्ति विहिना।।

करहु पूर्ण करि कृपा घनेरी। द्रवहु तुरन्त भयउ अवसेरी।।

जिसने करि अपराध अपारा। शरण आई जगदम्ब पुकारा।।

वह गति प्राप्त उसे है होती। सुलभ न जो सुरगण कहँ होती।।

सो. – मैं पातकि कुपात्र, आया हूँ तव शरण में।

परम दया का पात्र, माता! जो चहहु करहु।। 1।।

चौ.- परमेश्वरी! अज्ञान भूल से। अथवा बुद्धि भा़न्ति हेतु से।।

न्यूनाअधिकता जो कर दी हो। करहु क्षमा देवी!प्रसन्न हो।।

हे सत् चित आनंद स्वरूपा। कामेश्वरि जगमातु अनुपा।।

करु स्वीकार सप्रेम हमारी। यह पूजा करि कृपा अपारी।

मोपर रहहु प्रसन्न सदाया। निर्मल करहु बचन मन काया।।

परम गोप्य की रक्षाकारिणि शरणागत जन कहँ उद्धारिणि ।।

करहु ग़हण जगदम्ब हमारा। परम निवेदित यह जप सारा।।

प्राप्त सिद्ध हो मातु! अनुपा। अतुलनीय तव कृपा स्वरूपा।।

दो. – त्राहि! त्राहि!! जगदम्बिके! देबि सुरेश्वरि! त्राहि!

पाहि! पाहि!! जनवत्सले! पाहि! मातुवर।पाहि!।। 2।।

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