काव्य वास्तव में है क्या? (भाग-1)  23.5.17 

आज मैं महादेवी वर्मा की बुक सन्धिनी के कुछ अंश को बताना चाहूंगी। बहुत दिनों पहले का पढ़ा है कुछ त्रुटि हो तो क्षमा चाहूंगी। 

              महादेवीवर्मा मेरी  फेवरेट कवियित्री रही हैं इसलिए उनके अनुभव को लिखूंगी। और मेरा ज्ञान हर नये कवि  कवियित्री को समर्पित है जो यह नहीं समझ पाते कि काव्य का और उनके द्वारा लिखित कविता का पहले जैसा ही  महत्व है। कोई भी कवि या कवियित्री लिखने के साथ ही फेमस नहीं होते हैं उसके लिए वक्त चाहिए। 

  1.     पहले मैं बताती हूँ काव्य वास्तव में है क्या है? काव्य वास्तव में मानव के सुख दुःखात्मक संवेदनो ऐसी कथा हैं, जो उक्त संवेदनों को सम्पूर्ण परिवेश के  साथ दूसरी की अनुभूति का विषय बना देती है। किन्तु यह ग्रहण करने वाले बुद्धि की सहयोग की भी विशेष अपेक्षा रखता है। किसी विक्षिप्त व्यक्ति के सुख दुःखात्मक संवेदन उसी रुप में किसी दूसरे व्यक्तियों की अनुभूति का विषय नहीं बन पाते। क्यों कि संवेदन की सारी तीव्रता के साथ भी उसका बौद्धिक विघटन संवेदन की संश्लिष्टता को  विघटित कर देता है। परिणामस्वरूप उसके सुख दुःख से वांक्षित तादात्म्य न होने के कारण श्रोता या दर्शक या पढ़ने वालों के हृदय में सदा विपरीत भाव उदय हो जाते है यथा उसके हंसने पर करुणा रोने पर हंसी आ जाती है। 
  2. अब मैं बताती हूँ काव्य दूसरे अर्थ में क्या है? काव्य समुद्र की अतल गहराई से उठी हुई तरंग समुद्र के सतह से भी ऊपर उठ जाती है। उसके तटों की सीमाओं का भी उल्लंघन कर जाती है। परन्तु रहती वह समुद्र की ही है। काव्य की दृष्टि से दर्शन इन पूर्व रागों की कड़ियाँ काटता है, विज्ञान उनकी उपयोगिता अनुपयोगिता की परीक्षा करता है। परन्तु काव्य और अधिक गहरे स्नेहिल रंग चढ़ा कर हर कड़ी की आत्मीय स्वीकृति देता है। काव्य की पूर्णता  में अनेक पूर्व रागो का संस्कार प्रतिफलित होता है। 

समझने की दृष्टि से लेख थोड़ा बड़ा हो रहा है इसलिए अब काव्य की अनुभूति और कल्पना का काव्य में क्या स्थान है भाग-2 में  बताऊँगी।

 पेश है महादेवी वर्मा की कविता – – सन्धिनी महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई   पुस्तकों में से एक है। जिसकी कुछ पंक्तियाँ पेश है – 

इस एक बूँद आँसू में 

 चाहे सम़ाज्य बहा दो 

वरदानों की वर्षा से 

यह सूनापन विखरा दो। 

इछाओं के कम्पन से 

  सोता एकांत जगा दो, 

आशा की मुस्कराहट पर, 

मेरा नैराश्य लुटा दो। 

चाहे जर्जर तारों में, 

अपना मानस उलझा दो। 

इस पलकों के प्यालों में, 

सुख का आसव छलका दो, 

मेरे बिखरे प्राणों में 

सारी करुणा ढुलका दो, 

अपनी छोटी सीमा में 

अपना अस्तित्व मिटा दो। 

पर शेष नहीं होगी यह 

मरे प्राणो की क़ीडा, 

तुमको पीड़ा में ढूंढा, 

तुम में ढूढ़ूगी पीड़ा। 

                रजनी सिंह 

    6 विचार “ काव्य वास्तव में है क्या? (भाग-1)  23.5.17 &rdquo पर;

    1. महादेवी वर्मा की रचना को पुनः पढ़ने का अवसर मिला. उन्हें नमन. मैंने बचपन में उनकी रचना गिल्लू पढ़ी थी. मेरे जीवन में भी ऐसी एक घटना घटी जिसे मैंने कविता रूप में प्रतुत किया है “चुटचुट (एक बिछड़ा साथी)” अवसर मिलने पर नजर करें.

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