~सहारे की उम्मीद( 4.5.17)

सहारे की तुमसे थी उम्मीद। 

तुमने  बेसहारा कर दिया। 

अपना होकर भी पराया कर दिया। 

मन बार-बार पूछता है तुमसे। 

क्यों लगाया तुम से सहारे की उम्मीद। 

विश्वास, थोड़ा सा प्यार , थोड़ा सा अपनेपन का एहसास ही तो मांगा था सहारे में। 

न विश्वास ही किया, न प्यार ही किया, न अपनो के अपनेपन का एहसास ही किया। 

देना था जब साथ तो छोड़ हमें दूर जा बेगाना कर दिया। 

हम तो चन्द सालों के मेहमान कट जाएगी जिंदगानी। 

खुश रहना मेरे साथी गम छूए न तुम्हें। 

तुम सहारा बनो न बनो पर मेरी जिंदगी हर मोड़ पर तेरा सहारा बने।  

कुछ तो मेहरबानी करना इस दोस्ती के नाम पर थोड़ा यकीन रखना। 

                      रजनी सिंह 


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