लाख कोशिश करो कोई अपना होकर भी रुठ जाता है।
लाख कोशिश करो बनाया रिश्ता भी छूट ही जाता है।
सुख की चाहत में दुःख किसको भाया है।
दुख में भी सुखों का अनुभव करती हूँ तो,
दुख का एहसास छूट जाता है।
कोई बिना वजह नाराज हो तो मनाने की कोशिश, भी छूट जाता है।
कोई बहुत ही खामोश हो तो, बोलवाने की हिम्मत भी छूट जाता है।
ये तकदीर है मेरे “भाई ” ☺खुशी का एहसास न हो, तो खुशियां बांटने वाला भी कभी – कभी अन्दर ही अन्दर टूट जाता है।
मन की व्यथा जो न समझें चाहे जितना अटूट रिस्ता हो।
टूटने से बचाने की कोशिश भी छूट जाता है।
कोई सहृदय होकर भी इतना कठोर क्यों है?
की पत्थर की कठोर होने की कोशिश भी बेकार हो जाता है।
बांटा खुशी, मुस्कुराते चेहरे के पीछे दर्द को पढ़कर अपने को खुशी देने की कोशिश भी किसी मोड़ पर आकर हार जाता है।
चाहत के दो पल भी अपनापन का एहसास हो तो दुनिया में क्या कम है?
लकीन ऐसा ही रहा तो मेरे “भाई” खुशी से तुझको अब अपना कहने की कोशिश भी छूट जाता है।
रजनी सिंह
बहुत बढ़िया लिखा है आपने 🙏
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धन्यवाद अभय जी।
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बस लगा पढ़ते रहें बहुत खूब
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धन्यवाद।
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नमस्ते माँ-सी, बहुत दिन बाद आपकी पोस्ट देखी | वह भी थोड़ी उदासीन सी, आप ठीक हो ना? आपकी तबीयत भी कुछ ठीक ना थी, अब कैसे हो?
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खुश रहो। तबियत ठीक है। ऐसा कुछ नहीं है। जो भाव आता है लिख देती हूँ।
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फिर ठीक है माँ-सी | 😊😇
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Thanku for reading my post
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Very nicely written, liked the thoughts. loved reading this.
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बहुत खूब——कोई बिना वजह नाराज हो तो मनाने की कोशिश, भी छूट जाता है।
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धन्यबाद मधुसूदन जी पढ़ने और इतना समय देकर कमेन्ट करने के लिए।
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