~मन अधीर है (4.4.17)

 सुख  है कदमों में पर मन फिर भी अधीर है। 

जिंदगी खुशियों के साथ बीत रही है पर मन फिर भी अधीर है। 

सब रिश्तों को प्यार से निभाया पर मन फिर भी अधीर है। 

जिंदगी को खुशी से जीना सीखा और सिखाया पर मन फिर भी अधीर है। 

ऐसा क्यों होता है मन क्यों न धीर धरता है। 

 वो कौन सी कसक है जो मन फिर भी अधीर है। 

ऐ माँ ये जिंदगी तेरे हवाले है जो भी दिया वो स्वीकार किया। 

जो कभी अपना होकर भी अपना नहीं ।

उसके लिए मन फिर भी अधीर है

           रजनी सिंह 

10 विचार “~मन अधीर है (4.4.17)&rdquo पर;

  1. सही कहा——- जो पास है उसे मन देखे न देखे——अमेरिका पल भर में पहुच जाता है——उसे क्या—–उसका तो पहुचाना काम है—— बाकी दर्द से उसे क्या मतलब——बहुत अच्छा।

    पसंद करें

टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है।