अनन्य प्रेम में होना प्रेरणा है। यह ज्ञान को जीवन में उतारने के खातिर विश्वास पैदा करता है। अनन्य प्रेम का प्रत्यक्ष चिन्ह है एक अमिट मुस्कान।
प्रेम को प्रेम ही रहने दो। उसे कोई नाम न दो।
जब तुम प्रेम को नाम देते हो, तब वह एक सम्बन्ध बन जाता है, और सम्बन्ध प्रेम को सीमित करता है।
तुम मेंऔर मुझमें प्रेम है उसे रहने दो।
जब प्रेम चमकता है, यह सच्चिदानन्द है।
जब प्रेम बहता है, यह अनुकम्पा है।
जब प्रेम उफनता है, यह क्रोध है।
जब प्रेम सुलगता है, यह ईष्र्या है।
जब प्रेम नकारता है, यह घृणा है।
जब प्रेम सक्रिय है, यह सम्पूर्ण है।
जब प्रेम में ज्ञान है, यह “मैं” हूँ।
अद्भुत लिखा है।
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धन्यबाद गौरव जी।
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और जब प्रेम माँ-सी और बेटी में है तो वह अमोल प्रेम है | 😇
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विल्कुल सही कहा है आपने बिटिया रानी।
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जब प्रेम सक्रिय है, यह सम्पूर्ण है।
जब प्रेम में ज्ञान है, यह “मैं” हूँ।
बहुत सुँदर रचना 🙏दीदी प्रणाम 🙏
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ये मेरी रचना नहीं है अजय जी। मैं पढ़ रही थी अच्छा लगा तो लिख कर पब्लिश कर दी। इतना अच्छा मुझे लिखने नहीं आता। वैसे पढ़ने के लिए धन्यबाद।
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जी दीदी 🙏🙏🙏 वैसे बहुत अच्छी रचना है जिस की भी हैं🙏🙏🙏
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मौन की गूँज बुक का नाम है वही पढ़कर खत्म की तो अच्छा लगा इस लिए लिख दी। अब अनुमान नहीं अनुभव ओशो को पढ़ रही हूँ। उसकी भी कुछ कविता शेयर करूगीं।
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बढ़िया 👏
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धन्यबाद अभय जी। वैसे ये मेरी रचना नहीं है। मैं पढ़ रही थी अच्छा लगा तो ज्ञान बांटने के उद्देश्य से लिख दी।
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