अनुमान नहीं अनुभव की कुछ पंक्तियाँ लिख रही हूँ –
अगर अकेला होता मैं तो
शायद कुछ पहले आ जाता
लेकिन पीछे लगा हुआ था
संबंधों का लम्बा तांता
कुछ तो थी जंजीर पांव की
कुछ रोके था तन का रिश्ता
कुछ टोके था मन का नाता
इसीलिए हो गई देर
कर देना माफ विवशता मेरी
धरती सारी मर जाएगी
अगर क्षमा निष्काम हो गई
मैंने तो सोचा था अपनी
सारी उमर तुझे दे दूंगा
इतनी दूर मगर थी मंजिल
चलते – चलते शाम हो गई।
bahut khub rajni ji
jo sham dhalta hai to hi umeed ki kiran dikhti hai “Rajni ji”
Aksar ujale me rehne wale log andhere se dara karte hai
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ठीक कहा है आपने। धन्यवाद।
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बस यही है कहना उत्तम उत्तम उत्तम
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धन्यबाद गौरव जी।
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बहुत बढ़िया 👍
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धन्यबाद अन्जु जी।
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बहुत सुँदर ….👍
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धन्यबाद ।
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Very nice, loved it.
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Thank you.
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Nice lines
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Thank you Shiva ji.
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बहुत खूब👏👏👏
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धन्यबाद आपका मुकांसु जी।
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