अनुमान नहीं, अनुभव “ओशो” 

अनुमान नहीं अनुभव की कुछ पंक्तियाँ लिख रही हूँ –

अगर अकेला होता मैं तो 

शायद कुछ पहले आ जाता 

लेकिन पीछे लगा हुआ था 

संबंधों का लम्बा तांता 

कुछ तो थी जंजीर पांव की 

कुछ रोके था तन का रिश्ता 

कुछ टोके था मन का नाता 

इसीलिए हो गई देर

कर देना माफ विवशता मेरी 

धरती सारी मर जाएगी 

अगर क्षमा निष्काम हो गई 

मैंने तो सोचा था अपनी 

सारी उमर तुझे दे दूंगा 

इतनी दूर मगर थी मंजिल 

चलते – चलते शाम हो गई। 

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