सत्य का प्रकाश सीखलाता है, रात में अंधकार है तो दिन में उजाला भी था।
कलयुग में अंधकार है तो सत्ययुग में प्रकाश भी था।
बहू को सताया जाता है तो बेटी शब्द से प्यार भी था।
एक ओर स्वार्थी इंसान है तो दूसरी ओर त्यागी भगवान् भी था।
एक ओर ना इंसाफी है दूसरी ओर इंसाफ भी था।
हर जगह बैमानी है तो छिपा हुआ ईमान भी था।
असत्य से दौलत का ताकत है तो सत्य में छुपा शक्ति भी था।
इसीलिए अब कहती हूँ मौसम बदलते रहते हैं।
जो “था “उसका विपरीत” है “लेकिन मौसम की तरह ” था “को भी “है” में बदल जाना है।
Shandar likha hai apne
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धन्यवाद मधुसूदन जी।
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beshaq
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धन्यवाद अंसारी जी।
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शानदार 💐
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Thank you अजय जी
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आप जैसे लोग पढ़ने वाले रहें और उत्साह बढ़ाने वाले मिले तो मेरे पुराने खायलात को भी पढ़ने वाले मिल जाए तो मेरी रचना सबको जरूर पसंद आएगी।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
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बहुत सुदंर 👏🏻👏🏻
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कविताओं को पढ़ने के बाद आपने मेरा उत्साह बढ़ाया इसके लिए धन्यवाद आपका।
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आप ऐसे ही लिखते रहे और सभी आपकी रचनायें सभी को पंसद आती रहे 😊🙏🏻
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