~सत्य का प्रकाश (23.8.97)

सत्य का प्रकाश सीखलाता है, रात में अंधकार है  तो दिन में उजाला भी  था। 
कलयुग में अंधकार है तो सत्ययुग में प्रकाश भी  था। 

बहू को सताया  जाता है तो बेटी शब्द से प्यार भी था। 

एक ओर स्वार्थी इंसान है तो दूसरी ओर त्यागी भगवान् भी था। 

एक ओर ना इंसाफी है दूसरी ओर  इंसाफ भी था।

हर जगह बैमानी है तो छिपा हुआ ईमान  भी था। 

असत्य से दौलत का ताकत है तो सत्य  में छुपा शक्ति भी था। 

इसीलिए  अब कहती हूँ मौसम  बदलते रहते हैं। 
जो “था “उसका विपरीत” है “लेकिन मौसम की तरह ” था   “को भी “है” में बदल जाना है। 


10 विचार “~सत्य का प्रकाश (23.8.97)&rdquo पर;

  1. आप जैसे लोग पढ़ने वाले रहें और उत्साह बढ़ाने वाले मिले तो मेरे पुराने खायलात को भी पढ़ने वाले मिल जाए तो मेरी रचना सबको जरूर पसंद आएगी।
    आपको बहुत बहुत धन्यवाद।

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