~” दिल की आवाज” (23.8.97)

आज  के दौर में छाया अन्धकार है। 
दिनकर  के रहते हुए भी, दिन में अंधकार है। 

प्रकाश की एक  किरण तो है, लेकिन कलयुग के घोर अंधकार में छिप सा गया है, स्वार्थ इच्छा में सूरज। 

सब स्वार्थ समर में भाग रहे बेटा बेटी रिश्ते नाते, अब नाम के ही सब रहे। 

आज का मानव ये सोचे। 

दौलत रहे तो हर चीज खरीदी जा सकती है। 
पैसे से ही न्याय खरीदा जाता है, इंसाफ ईमान भी खरीदा जाता है। 

बेटा खरीदा जाता  है , तो बेटी सताई जाती है। 

कहीं नारी खरीदी जाती है तो पत्नी सताई जाती है। 

प्यार स्नेह खरीदा जाता है, तो जज्बात और विचार सताया जाता है। 

मुस्कान की  खरीद में खुशी सताई जाती है। 

आज का मानव ये सोचे, सच पैसा ही सब कुछ होता। 

अर्जित कर लो मन भरकर के शायद ये अवसर हाथ लगे न लगे। 

स्वार्थ  समर में बेटा – बेटी विकती है तो विक जाने दो। 

प्यार स्नेह लूटता है तो लूट जाने दो। 

रिश्ते – नाते विकते हैं तो विक जाने दो। 

हंसी-खुशी लुटती है तो लूट जाने दो। 

लेकिन मुझे  मेरी दौलत की खुशी, पैसे का नशा बस पूरी तो हो जाने दो। 

                                  रजनी सिंह 

2 विचार “~” दिल की आवाज” (23.8.97)&rdquo पर;

  1. रजनी जी बहुत सच झलकता है आपकी रचनाओं में। हम भी इन्ही जज्बातों को जग के सामने लाने के प्रयास में जुटे हैं। आप हमारी रचनाएं पढ़ सकती हैं। शायद आपको पसन्द आएं। शुक्रिया

    Liked by 1 व्यक्ति

टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है।