~ जिंदगी की आशा क्या? (2.10.97)

जिंदगी की आशा क्या होती है। इस कविता में मेरा विचार स्पष्ट है –

आशा की किरण पराये कोअपना समझना।
अन्धेरा रिस्ते और खूनी नाते की बुनियाद।

जीवन की आशा अपूर्ण लगने लगती क्यों?

क्योंकि स्वार्थ भावना निजी रिश्ते में निहित है।

जीवन की लालसा अधूरी क्यों?

क्यों कि लालसा है संघर्ष नहीं।

प्यार पाने की आशा में सब खो जाता क्यों?

क्योंकि प्यार शब्द का लगाया ही गया गलत अर्थ।

प्यार शब्द ने अपना नाता हर नाते से जोड़ा है।

मां की ममता से जोड़ा है, पिता पालक से जोड़ा है।

भाई-बहन से जोड़ा है, बेटी – बेटा से जोड़ा है।
लकीन इसका गलत अर्थ कब लगा?

जब लोगों ने प्रियतम-प्रेययसी तक सीमित कर छोड़ा है।
अब प्यार शब्द कहने में दिल डरताहै क्योंकि इसकाअर्थ एक ही में सीमट कर रह गया है।

रजनी सिंह

7 विचार “~ जिंदगी की आशा क्या? (2.10.97)&rdquo पर;

    1. धन्यवाद आपका। मेरी कविता सन97कीही लिखा हुआ है। अब पब्लिश करना शुरू किया है। पढकर बताईगा कि नयी पीढ़ी के पढ़ने लायक है मेरी कविता।

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      1. नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति सम्मान की भावना को जगाना आवश्यक है, कविता भी हिन्दी का अभिन्न अंग है। कविताएँ समय के अधीन नहीं होती, लिखते रहिये वर्तमान विषयों पर भी।

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