~गीता का ज्ञान पर कविता(9.9.16)

‘गीता’ का ज्ञान अधूरा है ’ 

भक्त का भक्ति अधूरा है।

जहाँ श्रद्धा भाव न हो, 

सब उल्टा हो जाता है।  

गीता की कसमें खाकर भी, 

सच्चा गवाह नहीं  मिलता।

न्यायालय में न्याय नहीं होता, 

माँ बहन सभी की होती है। 

दूजे की माँ की ममता की कद्र नहीं होती। 

जिस आँचल में दूध छिपा, 

उस दूध की कीमत क्या होगी।

झूठ ही राज का सत्ता हैं, 

तो सच की कीमत क्या होगी।

जब बहन-बेटी बीक जाती हैं,

 तो औरत की कीमत क्या होगी।

जो प्रकृति का पूजक न हो, 

वो भगवान का पूजक क्या होगा। 

जिस प्रकृति ने जन्म दिया, 

उस प्रकृति की कीमत क्या होगी। 

जब नेचर ही बदल जाये, 

तो नेचर की कीमत क्या होगी। 
जहाँ अनर्थ-अनर्थ ही हो, 

वहाँ अर्थ की कीमत क्या होगी।

जहाँ नफरत से भरा जहाँ, 

वहाँ प्रेम की कीमत क्या होगी। 

जहाँ हर जगह बेवफाई हैं,

 वफा की कीमत क्या जाने। 

जिसने खुद को अपर्ण न किया, 

समर्पण  की कीमत क्या जाने। 

जो भर न सका मन भावों से,

भगवान की कीमत क्या जाने। 

जहाँ धर्म और कर्म न हो,

वे धर्म-कर्म की कीमत क्या जाने। 

जहाँ झूठ की कीमत हो, 

वो सच की कीमत क्या जाने।

सच पर ही है धरा टीकी, 

धरती की कीमत कर लो तुम। 

जो दिन की कीमत कर न सका, 

ओ रजनी की कीमत क्या जाने।

 रजनी सिंह 

6 विचार “~गीता का ज्ञान पर कविता(9.9.16)&rdquo पर;

    1. आपने विल्कुल सही कहा। आप मेरी कविता को पढ़ते रहिये पहले की लिखी जरूर है लेकिन पढ़ने पर वर्तमान समय का ही लगेगा। क्योंकि घटनाओं के घटने से पहले मेरी कविता में जिक्र हो जाता है। नये में मैंने ओमपुरी को श्रद्धांजलि सुमन और मकर संक्रांति पर भी लिखा है। पढकर बताईगा कैसा लगा।

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